भारत की एक ऐसी महान रानी योद्धा जिस ने अकबर को उसकी औकात याद दिला दी थी

Leave a Comment

भारत में महिलाओं को अक्सर दो रुपों में अधिक जाना जाता रहा है। एक है मां जिसमें औरत की ममता भरा स्वरूप नजर आता है। दूसरा है शक्ति, एक दिव्य रुप, जिसमें दुष्टो का वध करते हुए स्त्री-शक्ति को दिखाया जाता है।


भारत देश में ऐसी अनेक कहानियां मिल जाएगी जहां स्त्री ने दुर्गा अवतार की तरह दुष्टों का नाश किया। आज आपके सामने हम ऐसे ही एक कहानी लाने वाले हैं।
यह कहानी गोंडवाना की रानी की है, जिनका नाम रानी दुर्गावती था। इन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद अपने राज्य का शासन अनेक वर्षों तक सफलतापूर्वक संभाला।

रानी दुर्गावती भारतीय इतिहास की एक महान रानी के रूप में जानी जाती है।

कहा जाता है की अकबर रानी दुर्गावती को पसंद करता था। एक बार उसकी नियत में खोट आ गई और उसने रानी को पाने के लिए प्रस्ताव भेजा। लेकिन रानी ने प्रस्ताव ठुकरा दिया। यह बात अकबर को रास नहीं आई। इसी कारण अकबर ने रानी दुर्गावती के राज्य पर आक्रमण कर दिया। यह इतिहास में भी लिखा गया है। लेकिन रानी दुर्गावती इतनी आसानी से हार कहां मानने वाली थी। जैसा उसका नाम था वैसे ही माता दुर्गा की तरह उनमें हिम्मत भी थी।

आइए जानिए क्या हुआ जब अकबर ने आक्रमण किया
थर-थर दुश्मन कांपे,
पग-पग भागे अत्याचार,
नरमुण्डों की झडी लगाई,
लाशें बिछाई कई हजार,
जब विपदा घिर आई चहुंओर,
सीने मे खंजर लिया उतार…
यह कविता की कुछ पंक्तियां रानी की शौर्य गाथा और उनकी हिम्मत को व्यक्त करती हैं। इतिहास कहता है की उस समय अकबर की नजर रानी पर थी। रानी के कुछ दुश्मन रानी के विपरीत खड़े हो गए थे उसी युद्ध में और इन्ही दुश्मनों ने अकबर के भी कान भर दिए थे। यह विवाद तब शुरू होता है जब अकबर युद्ध का बहाना ढूंढते हुए रानी से सफेद हाथी मांगता है, लेकिन वह रानी का प्रिय हाथी होने के कारण रानी अकबर की मांग को ठुकरा देती है।

इस बात को बहाना बनाकर अकबर आसिफ खान के नेतृत्व में रानी के राज्य पर हमला कर देता है। अकबर की सेना रानी की सेना के आगे घुटने टेक देती हैं। ऐसा पहली बार हुआ था अकबर की सेना ने हार मान ली हो अकबर ने अगली बार पहले से दोगुनी सेना तैयार की और फिर से रानी के राज्य पर हमला किया। उस समय रानी के पास अधिक सैनिक नहीं थे। उन्होंने जबलपुर के पास मोर्चा लगाया और खुद ही अपनी सेना का नेतृत्व किया।
रानी के साथ युद्ध में अकबर के 3000 से भी अधिक सैनिक मारे गए और रानी की भी अपार  क्षति हुई।
अगले दिन 24 जून, 1564 को मुगलों ने फिर हमला किया। उस दिन पहले की तुलना में रानी की सेना अधिक थकान से भरी हुई थी, लेकिन उन्होंने इस बात का निश्चय कर लिया था की मौत हम स्वीकार कर लेंगे लेकिन अकबर की सेना के आगे घुटने नहीं टेकेंगे। एक मां का धर्म निभाते हुए रानी ने अपने पुत्र नारायण को एक सुरक्षित स्थान पर भेज दिया।
युद्ध में रानी तीर लगने से घायल हो जाती है। जब रानी को यह लगने लगता है कि उनका अंतिम समय निकट आ गया है तो वह अपने वजीर आधार सिंह से आग्रह करती है कि वह उनकी गर्दन काट दे। मगर आधार सिंह उनकी इस बात को नहीं मानता और कहता है कि “मैं अपनी रानी को कैसे मार सकता हूं।” अतः रानी अपनी कटार निकाल अपने सीने में घोप कर आत्म बलिदान दे देती है।
रानी ने अपने राज्य में 15 सालों तक राज किया था। रानी की मृत्यु के पश्चात यह राज्य भी दूसरे राज्यों की तरह कलह और दुखों का घर बन गया
If You Enjoyed This, Take 5 Seconds To Share It

0 comments:

Post a Comment

Loading...