चिलाय माता :- तंवर वंश की कुलदेवी

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चिलाय माता की तंवर वंश कुलदेवी के रूप में पूजा आराधना करता है। इतिहास में तंवरों की कुलदेवी के अनेक नाम मिलते हैं जैसे चिलाय माता, जोग माया (योग माया), योगेश्वरी (जोगेश्वरी), सरूण्ड माता, मनसादेवी आदि।
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स्वांगियां माता :- भाटी राजवंश की कुलदेवी

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स्वांगियां माता : राजस्थान के जनमानस में आस्था की प्रतीक लोकदेवियों, कुलदेवियों के उद्भवसूत्र पर यदि दृष्टि डाली जाये तो हम पायेंगे कि शक्ति की प्रतीक बहुत सी प्रसिद्ध देवियों का जन्म चारणकुल में हुआ है। चारणकुल में जन्मी प्रसिद्ध देवियों में आवड़, स्वांगियां, करणी माता आदि प्रमुख है। विभिन्न राजवंशों की गौरवगाथाओं के साथ इन देवियों की अनेक चमत्कारिक घटनाएँ इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। वीर विनोद के लेखक श्यामलदास ने चारणों की उत्पत्ति देव सर्ग में बतलाते हुये उनकी गणना देवताओं में की है। इसके लिए उन्होंने श्रीमद्भागवत का संदर्भ दिया है। चारणकुल में जन्मी इन देवियों ने अपने जीवनकाल में ही प्रत्यक्ष चमत्कारों के बलबूते राजस्थान के आम जन मानस को नहीं, तत्कालीन शासकों को भी प्रभावित किया है। यही कारण है कि इन देवियाँ को इनके जीवनकाल में ही जहाँ आम जनता ने ईष्टदेवी के रूप में मान्यता दी, वहीं शासकों ने इन्हें अपने कुल की देवी के रूप में स्वीकार किया। राजस्थान के प्रत्येक राजवंश ने देवीशक्ति के महत्त्व को मानते हुए अपने राज्य की स्थापना को कुलदेवी का आशीर्वाद माना तथा विभिन्न युद्धों में विजयी होने और राज्य के चहुँमुखी विकास में सफल होने पर अपनी कुलदेवी में पूर्ण आस्था रखते हुए अनेकानेक भव्य मंदिरों का निर्माण कराया व उनकी पूजा अर्चना का पुख्ता प्रबंध करवाते हुए जन जन में देवी के प्रति आस्था की अलख जगाई।
उतर भड़ किंवाड़ के विरुद से विभूषित, शक्ति के उपासक राजस्थान में जैसलमेर के भाटी राजवंश ने चारणकुल में जन्मी देवी स्वांगियां को शक्ति का प्रतीक मानते हुए कुलदेवी के रूप में स्वीकार किया। स्वांगियां जिसे आवड़ माता के नाम से भी जाना जाता है, की भाटी राजवंश की गौरवगाथाओं के साथ अनेक चमत्कारी घटनाएँ जुड़ी है।
ऐसी मान्यता है कि देवी आवड़ के पूर्वज जो सउवा शाखा के चारण थे, सिंध के निवासी थे। उनका गौपालन के साथ घोड़ों व घी का व्यवसाय था। उसी परिवार का एक चेला नामक चारण मांड प्रदेश (वर्तमान जैसलमेर) के चेलक गांव में आकर बस गया। उसके वंश में मामड़िया नाम का एक चारण हुआ, जिसके जिसके घर सात कन्याओं ने जन्म लिया। लोकमान्यता के अनुसार मामड़िया चारण के संतान नहीं थी, सो संतान की चाहत में उसने संवत 808 में हिंगलाज की यात्रा की। तब हिंगलाज ने ही सात कन्याओं के रूप में उसके घर जन्म लिया। इन सातों कन्याओं में सबसे बड़ी कन्या का नाम आवड़ (aavad) रखा गया। मांड प्रदेश में अकाल के वक्त ये परिवार सिंध में जाकर हाकड़ा नदी के किनारे कुछ समय रहा। जहाँ इन बहनों ने सूत कातने का कार्य भी किया। इसलिए ये कल्याणी देवी कहलाई। फिर आवड़ देवी की पावन यात्रा और जनकल्याण की अद्भुत घटनाओं के साथ ही क्रमशः सात मंदिरों यथा काला डूंगरराय का मंदिर, भादरियाराय का मंदिर, तन्नोटराय का मंदिर, तेमड़ेराय का मंदिर, घंटीयाली राय का मंदिर, देगराय का मंदिर, गजरूप सागर देवालय का निर्माण हुआ और समग्र मांड प्रदेश में लोगों की आस्था उस देवी के प्रति बढती गई।(हुकुम सिंह भाटी, राजस्थान की कुलदेवियां, पृष्ठ-44)
सिंध से लौटने पर क्षेत्र के लोगों ने जिस गांव में देवी का अभिनन्दन किया उस गांव का नाम आइता रखा गया और देवी ने गांव के पास स्थित काले रंग की पहाड़ी जिसे स्थानीय भाषा में डूंगर कहा जाता है, पर आवास किया। जहाँ चमत्कारों की चर्चा सुनने के बाद लोद्रवा के परमार राजा जसभाण ने उपस्थित होकर देवी के दर्शन किये। बाद में ‘‘यहाँ संवत 1998 में महारावल जवाहरसिंह ने मंदिर का निर्माण कराया।(हुकुम सिंह भाटी, राजस्थान की कुलदेवियां, पृष्ठ-45) जैसलमेर से 25 किलोमीटर दूर काले रंग की पहाड़ी पर बने मंदिर को काला डूंगरराय मंदिर के नाम से जाना जाता है तथा डूंगर पर मंदिर होने के कारण स्थानीय लोगों में माता का नाम डूंगरेचियां भी प्रचलन में है।
डा.हुकम सिंह भाटी के अनुसार बहादरिया भाटी के अनुरोध पर देवी आवड़ अपनी बहनों के साथ आकर एक टीले पर रुकी। जहाँ राव तणु भाटी ने पहुँच कर दर्शन किये और लकड़ी के बने हुए आसन (सहंगे) पर देवी को विराजमान किया गया। तीन बहनों को दाई ओर तथा तीन को बाईं तरफ खड़ा किया और अपने हाथ से चंवर ढुलाए। तब आवड़ जी ने आशीर्वाद देते हुए कहा-‘‘मांड प्रदेश में तुम्हारे वंशजों की स्थायी राजधानी स्थापित होगी और वहां पर तुम्हारा राज्य अचल होगा।’’ सहंगे पर बैठने के कारण आवड़ जी स्वांगियां कहलाई।
 इस प्रकार राव तणु भाटी के बाद भाटी राजवंश ने देवी आवड़ जी को स्वांगियां माता के नाम से कुलदेवी के रूप में स्वीकार किया। बहादरिया भाटी के अनुरोध पर देवी जिस टीले पर आई बाद में उस जगह का नाम भादरिया पड़ा। जो जैसलमेर के शासकों के साथ ही स्थानीय जनता की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। कहा जाता है कि संवत 1885 में बीकानेर और जैसलमेर की सेनाओं के मध्य युद्ध हुआ, जिसमें स्वांगियांजी के अदृश्य चक्रों से बीकानेर सेना के अनेक सैनिक मारे गये और बाकी भाग खड़े हुए। तब तत्कालीन महारावल ने भादरिया में भव्य मंदिर का निर्माण कराया। आज भी भाटी वंश के लोग अपनी इस कुलदेवी के प्रति पूर्ण आस्था रखते है तथा देवी के प्रतीक के रूप में त्रिशूल का अंकन कर धूप दीप, पूजा-अर्चना आदि के रूप में उपासना करते है।माता स्वांगियां का एक मंदिर भारत-पाक सीमा पर तन्नोट गांव में भी है। जैसलमेर से लगभग एक सौ तीस कि॰मी॰ की दूरी पर तनोट राय को हिंगलाज माँ का ही एक रूप माना जाता है। हिंगलाज माता जो वर्तमान में बलूचिस्तान जो पाकिस्तान में है, स्थापित है। भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने वि.सं. 828 में तनोट का मंदिर बनवाकर मूर्ति को स्थापित कि थी। भाटी तणुराव द्वारा निर्मित इस मंदिर में सैकड़ों वर्षों से अखण्ड ज्योति आज तक प्रज्वलित है। तणुराव भाटी द्वारा निर्मित होने के कारण इस मंदिर को तनुटिया तन्नोट मंदिर के नाम से जाना जाता है। 1965 ई. में हुए भारत-पाक युद्ध में भारतीय सेना के पक्ष में देवी द्वारा दिखाये चमत्कार के बाद मंदिर की देखरेख, पूजा अर्चना का कार्य सीमा सुरक्षा बल के जवानों द्वारा सम्पादित किया जाता है। 1965 ई. में हुए भारत-पाक युद्ध में पाक सेना ने भारतीय क्षेत्र में शाहगढ़ तक आगे बढ़कर लगभग 150 किलोमीटर कब्जा कर तन्नोट को घेर बम वर्षा की। पर देवी की कृपा से 3000 पाकिस्तानी बमों में से एक भी नहीं फटा। जिससे क्षेत्र में कोई नुकसान नहीं नहीं हुआ। अकेले मंदिर को निशाना बनाकर करीब 450 गोले दागे गए। परंतु चमत्कारी रूप से एक भी गोला अपने निशाने पर नहीं लगा और मंदिर परिसर में गिरे गोलों में से एक भी नहीं फटा और मंदिर को खरोंच तक नहीं आई।
सैनिकों ने यह मानकर कि माता अपने साथ है, कम संख्या में होने के बावजूद पूरे आत्मविश्वास के साथ दुश्मन के हमलों का करारा जवाब दिया और उसके सैकड़ों सैनिकों को मार गिराया। दुश्मन सेना भागने को मजबूर हो गई। कहते हैं सैनिकों को माता ने स्वप्न में आकर कहा था कि जब तक तुम मेरे मंदिर के परिसर में हो मैं तुम्हारी रक्षा करूँगी।
इसी तरह माता के घंटियालीराय मंदिर में इसी युद्ध में पाक सैनिकों ने मूर्तियों को खंडित कर माता के कोपभाजन का शिकार बने। प्रतिमाओं को खंडित करने वाले पाक सैनिकों के मुंह से खून निकलने लगा और वे अपने शिविर में पहुँचने से पहले ही मृत्यु को प्राप्त हुए। इस तरह की घटना के बाद भारतीय सेना के जवानों के साथ स्थानीय जनता में माता के प्रति श्रद्धा और अधिक बढ़ गई।
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इस किले की दीवारों से निकलता था खून, सहमे थे लोग

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विश्व के प्राचीन व विशाल किलों में शुमार रोहतास गढ़ किला अपने स्वर्णिम इतिहास की जगह उपेक्षा की दास्तां बयां करने को विवश है। वह इमारत ध्वस्त हो रही है, जहां के कण-कण में सैकड़ों वर्षों का इतिहास छिपा है। वहां पशु बांधे जा रहे हैं और भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग मौन है। वर्षों तक नक्सलियों ने इस पर कब्जा कर रखा था और अब मुक्त होने के बाद भी इसे सहेजने की दिशा में कोई पहल नहीं हो रही है।



मीर कासिम के पराजय के साथ शुरू हुआ पतन:-
इसे अक्टूबर 1764 में बक्सर युद्ध में मीर कासिम अली के पराजित होने के बाद कैप्टन थॉमस ने तहस-नहस कर दिया था। जहां से 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेज ब्रिगेडियर डगलस ने मेजर हेनरी हैवलॉक की मदद से स्वतंत्रता सेनानियों को निकाल बाहर किया था। 1990 के दशक में इस किले पर नक्सलियों का साम्राज्य स्थापित था। नक्सली इस किले में अदालत लगाकर फैसला सुनाने और सजा मुकम्मल करने का काम किया करते थे। अभी हाल में रोहतास पुलिस ने नक्सलियों के चंगुल से इस किले को मुक्त किया है। लेकिन अभी भी यह किला अपनी बदहाली की दास्तां बयां कर रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से संरक्षित होने के बावजूद इसके भवनों के ऊपर पेड़ उग आये हैं। यहीं नहीं मुख्य किला के अंदर के भवन ध्वस्त होने की कगार पर हैं।


बिहार, झारखंड, बंगाल और उड़ीसा तक के लिए यहां से जारी होते थे फरमान
रोहतास जिले के इतिहासकार श्याम सुंदर तिवारी के अनुसार रोहतास गढ़ से खरवार, चेरों, उरांव, मुण्डा सताल आदि जनजातियों का प्राचीन काल से संबंध रहा है। जिसे अकबर के समय में 1587 ई में राजा मान सिंह ने रोहतासगढ़ को अपनी प्रांतीय राजधानी बनाया और संयुक्त बिहार बंगाल यानी बंगलादेश से लेकर पूरा बिहार, झारखण्ड, ओडिशा की यह राजधानी रही है। इस किले से ही राजा मान सिंह अपने सल्तनत की बागडोर संभालते थे। उस समय यहां महत्वपूर्ण निर्माण 


स्मारक नष्ट करने की स्थिति में दंड का प्रावधान
कभी राजा मान सिंह जैसे शासक की सत्ता का केंद्र रह चुका यह किला अब प्रशासनिक उदासीनता के कारण पशुओं का बथान बना हुआ है। गाजी दरवाजे के पास स्थित हब्स खां का मस्जिद, मदरसे और मकबरे तथा नागा टोली के पास की शेरशाही मस्जिद के पास लगे भारतीय पुरातत्व संरक्षण के सूचना पटल के अनुसार यह स्मारक संरक्षित है। स्मारक नष्ट करने की स्थिति में दंड का प्रावधान भी है। लेकिन इन चारों स्मारकों के अंदर अब पशु बांधे जा रहे हैं। लगभग छह महीने पहले मेघा घाट रास्ते की किला बंदी की मरम्मत हुई थी। लेकिन यह फिर ध्वस्त हो रही है।


अंधविश्वास या सच!
दो हजार फीट की उंचाई पर स्थित ये किला 25 किलोमीटर तक फैला हुआ है। इस किले के बारे में कहा जाता है कि कभी इस किले की दिवारों से खून टपकता था। फ्रांसीसी इतिहासकार बुकानन ने लगभग दो सौ साल पहले रोहतास की यात्रा की थी, तब उन्होंने पत्थर से निकलने वाले खून की चर्चा एक दस्तावेज में की थी। उन्होंने कहा था कि इस किले की दीवारों से खून निकलता है। वहीं, आस-पास रहने वाले लोग भी इसे सच मानते हैं। वे तो ये भी कहते हैं कि इसमें से बहुत पहले आवाज भी आती थी। लोगों का मानना है कि वह संभवत: राजा रोहिताश्व के आत्मा की आवाज थी।
इतिहासकार हो या पुरातत्व के जानकार, वे भी नहीं जानते कि आखिर ऐसी क्या बात थी जो किले के दीवारों से खून निकलता था। यह अंधविश्वास है या सच- ये रहस्य तो इतिहास के गर्त में ही छिपा है।
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इस किले में शिवाजी ने एक ताकतवर योद्धा अफजल खान को नाटकीय तरीके से मार दिया था.

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प्रतापगढ़ किला, महाबलेश्वर
 
महाराष्ट्र के जिला सतारा में स्थित है प्रतापगढ़ किला, जो प्रतापगढ़ के युद्धस्थल के रूप में भी जाना जाता है। किला पोलादपुर से 15 किमी. और महाबलेश्वर से 23 किमी. की दूरी पर स्थित है। समुद्र तल से 1080 मीटर की ऊंचाई पर यह किला एक पर्वत स्कंध पर बना हुआ है। शिवाजी ने नीरा और कोयना नदियों के तटों और पार दर्रे की रक्षा के लिए इस किले के निर्माण का उत्तरदायित्व मोरोपंत त्रिम्बक पिंगल को सौंपा था। 
 
 
 
 
 
 

यह किला भारतीय इतिहास के उस दौर का भी गवाह है जब शिवाजी ने एक ताकतवर योद्धा अफजल खान को नाटकीय तरीके से मार दिया था और जहां से मराठा साम्राज्य ने एक निर्णायक मोड़ लिया। पानघाट पर स्थित यह किला छत्रपति शिवाजी के आठ प्रमुख किलों में से एक माना जाता है। 


 
किले का निर्माण कार्य 1656 में पूरा हो गया था। प्रतापगढ़ का युद्ध 10 नवंबर 1659 को किले की प्राचीर के नीचे शिवाजी और अफजल खान के बीच लड़ा गया था। इसी युद्ध ने मराठा साम्राज्य की नींव डाली थी। क्षेत्रीय राजनीति में इसके बाद भी प्रतापगढ़ की हिस्सेदारी बनी रही।



1818 में अंग्रेजों से हुए तीसरे युद्ध में मराठा साम्राज्य को भारी नुकसान उठाना पड़ा और उन्हें प्रतापगढ़ किले से भी हाथ धोना पड़ा। मुख्यत: दो भागों में बंटे किले पर सतारा रियासत के उत्तराधिकारी उदय राजे भोंसले का स्वामित्व है।

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भारत के 10 प्रसिद्ध फोर्ट : Top 10 Famous Forts of India

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1. कुम्भलगढ़ का किला,  राजस्थान (Kumbhalgarh Fort, Rajasthan) :Kumbhalgarh Fort, Rajasthan, History, Story & Information in Hindi
राजस्थान के राजसमन्द में स्तिथ कुम्भलगढ़ फोर्ट का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था। इस फोर्ट की दो ख़ास विशेषताए है।  पहली इस फोर्ट की दीवार विशव की दूसरी सबसे बड़ी दीवार है जो की 36 किलो मीटर लम्बी है तथा 15 फ़ीट चौड़ी है, इतनी चौड़ी की इस पर एक साथ पांच घोड़े दौड़ सकते है। दूसरी इस दुर्ग के अंदर 360 से ज्यादा मंदिर हैं जिनमे से 300 प्राचीन जैन मंदिर तथा बाकि हिन्दू मंदिर हैं। यह एक अभेध किला है जिसे दुश्मन कभी अपने बल पर नहीं जीत पाया। इस दुर्ग में ऊँचे स्थानों पर महल,मंदिर व आवासीय इमारते बनायीं गई और समतल भूमि का उपयोग कृषि कार्य के लिए किया गया वही ढलान वाले भागो का उपयोग जलाशयों के लिए कर इस दुर्ग को यथासंभव स्वाबलंबी बनाया गया।

2. मेहरानगढ़ किला, राजस्थान (Mehrangarh Fort, Rajashthan) :Mehrangarh Fort, Rajashthan, History, Story & Information in Hindi
मेहरानगढ़ किला राजस्थान के जोधपुर शहर में स्थित है। यह 500 साल से भी ज़्यादा पुराना और सबसे बड़ा किला है। यह किला काफी ऊंचाई पर स्थित है। इसे राव जोधा द्वारा बनवाया गया था। इस किले में सात गेट हैं। प्रत्येक गेट राजा के किसी युद्ध में जीतने पर स्मारक के रूप में बनवाया गया था। इस किले में जायापॉल गेट राजा मानसिंह ने बनवाया था। किले के अंदर मोती महल, शीश महल जैसे भवनों को बहुत ही ख़ूबसूरती से सजाया गया है। चामुंडा देवी का मंदिर और म्यूज़ियम इस किले के अंदर ही हैं। इस किले का म्यूज़ियम राजस्थान का सबसे अच्छा म्यूज़ियम माना जाता है।

3. जैसलमेर किला,राजस्थान (Jaisalmer Fort, Rajasthan) :Jaisalmer Fort, Rajasthan, History, Story & Information in Hindi
यह दुनिया का सबसे बड़े किलों में एक है और राजस्थान में स्थित है। इसे रावल जैसवाल ने बनवाया था। थार रेगिस्तान के बीचोंबीच इस किले को बनवाया गया था। जैसलमेर किले को सोनार किले के नाम से भी जाना जाता है। गोल्डन किला शहर से 76 किमी दूर त्रिकुटा पहाड़ी पर त्रिकोण आकार में बनाया गया है। इस किले को भारत का दूसरा सबसे पुराना किला माना जाता है। किले में सबसे ज़्यादा आकर्षक जैन मंदिर, रॉयल पैलेस और बड़े दरवाजे हैं। जैसलमेर रेगिस्तान का शहर है जो त्रिकुटा पहाड़ी, हवेलियों, और झीलों के लिए फेमस है।

4. चित्तौड़गढ़ किला, राजस्थान (Chittorgarh Fort, Rajasthan) :Chittorgarh Fort, Rajasthan, History, Story & Information in Hindi
चित्तौडगढ़ को किलों का शहर कहा जाता है। यहां पर आपको भारत के सबसे पुराने और आकर्षक किले देखने को मिलेंगे। उन्हीं किलों में से एक चित्तौड़ का किला है। यह किला बेराच नदी के किनारे बनाया गया है। नदी के किनारे स्थित होने के कारण इसे पानी का किला भी कहा जाता है, क्योंकि इस किले में 84 पानी की जगहें हैं, जिनमें से 24 आज के समय में सही स्थिति में हैं। यह किला महाराणा प्रताप की बहादुरी की गवाही देता है। राजस्थान में राजपूत फेस्टिवल मनाया जाता है, जिसे जौहर मेला नाम से जाना जाता है। चित्तौडगढ़ के किले में दो फेमस जलाशय हैं, जो विजय स्तंभ और राणा कुंभा के नाम से प्रसिद्ध हैं। इस किले के अलावा यहां पर आपको अम्बर किला, जयगढ़ किला और तारागढ़ किला है, जिन्हें देखने के लिए पर्यटकों का तांता लगा रहता है।

5. लाल किला ,दिल्ली  (Lal Kila, Delhi) :Lal Kila, Delhi, History, Story & Information in Hindi
भारत का सबसे आकर्षक और फेमस किलों में लाल किला का नाम आता है। यह किला दिल्ली में स्थित है। इसे मुगल शासक शाहजहां ने बनवाया था। इस किले की दीवारें लाल पत्थर की हैं। यही वजह है कि इसे लाल किला नाम से जाना जाता है। इस किले के अंदर देखने लायक कई चीजें हैं। मोती मस्जिद, दीवान-ए-आम और दीवान-ए-खास देखने के लिए काफी लोग रोज ही आते हैं। यह किला यमुना नदी के किनारे है। इस किले में आपको पुरातात्विक म्यूज़ियम और युद्ध से जुड़ी जानकारी देने वाला म्यूज़ियम भी बनाया गया है। यह भारत के सबसे महत्वपूर्ण धरोहरों में से एक है, जहां से देश के प्रधानमंत्री देश के लोगों को संदेश देते है औैर स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराते हैं।

6. लाल किला,आगरा (Lal Qila, Agra) :Lal Qila, Agra, History, Story & Information in Hindi
उत्तर प्रदेश के ताज महल से 2 किमी की दूरी पर लाल किला बनाया गया है। इस किले को सिकंदर लोधी ने आगरा में रहने के लिए बनवाया था। इस किले को यूनेस्को विरासत में दर्जा हासिल है। यह यमुना नदी के किनारे बनाया गया है। उत्तर प्रदेश के बेस्ट टूरिस्ट प्लेस में आगरा का यह लाल किला आता है। इस किले के अलावा झांसी किला भी अपनी कलाकारी के लिए फेमस है। झांसी का किला महारानी लक्ष्मीबाई का किला है।

7. ग्वालियर किला, मध्य प्रदेश (Gwalior Fort, Madhya Pradesh) :Gwalior Fort, Madhya Pradesh, History, Story & Information in Hindi
ग्वालियर का किला राणा मानसिंह तोमर ने मध्य प्रदेश में बनवाया था। यह किला ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है। इस किले के आकर्षण का केंद्र सास-बहू मंदिर और गुजारी महल है। इसमें मंदिर और म्यूज़ियम भी है। यह राजसी स्मारक भारत के सबसे बड़े किलों में से एक है। इस किले के महत्व को याद रखने के लिए इस पर डाक टिकट भी जारी किया गया है। यह मध्य प्रदेश के सबसे पसंदीदा टूरिस्ट प्लेसेस में से एक है।

8. गोलकोंडा किला, हैदराबाद (Golconda Fort. Hyderabad) :Golconda Fort. Hyderabad, History, Story & Information in Hindi
आंध्र प्रदेश के हैदराबाद शहर में गोलकोंडा किला काकतिया राजा ने बनवाया था। यह किला अपने समृद्ध इतिहास और राजसी भव्य संरचना के लिए जाना जाता है। गोलकुंडा कोल्लूर झील के पास हीरे की खान के लिए भी फेमस है। इस किले को हैदराबाद के सात आश्चर्य के रूप में जाना जाता है। इस किले के अलावा यहां पर आपको चारमीनार, बिरला मंदिर, रामोजी फिल्म सिटी, हुसैन सागर, सालारजंग म्यूज़ियम और मक्का मस्जिद जैसी कई दर्शनीय जगहें हैं।

9. कांगड़ा किला,हिमाचल (Kangra Fort, Himachal) :Kangra Fort, Himachal, History, Story & Information in Hindi
हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में बाणगंगा और माझी नदियों के संगम पर कांगड़ा के शाही परिवार ने इस किले का निर्माण किया था। यह किला दुनिया के सबसे पुराने किलो में से एक है। यह हिमालय का सबसे बड़ा किला और इंडिया का सबसे पुराना किला है। इस किले में वज्रेश्वरी मंदिर है, जिसका काफी महत्व है। किलों और मंदिरों के अलावा हिमाचल अपनी खूबसूरती के लिए भी फेमस है। कांगड़ा शहर की खूबसूरती देखने के लिए आप सड़क रास्ते से यात्रा करें। हिमाचल की काफी सारी इमारतें धर्मशाला के पास भी हैं।

10. पन्हाला किला, महाराष्ट्र (Panhala Fort, Maharashtra) :Panhala Fort, Maharashtra, History, Story & Information in Hindi
महाराष्ट्र में कोल्हापुर के पास सहयाद्री पर्वत में इस किले को बनाया गया है। यह किला मराठा शासकों की याद दिलाता है। महाराष्ट्र में ज़्यादातर किले शिवाजी के समय में बनाए गए थे। महाराष्ट्र के पुनडार किला, बहादुरगढ़ किला, अहमदगढ़ किला और रत्नगढ़ किले में आप ट्रैकिंग भी कर सकते हैं। ये किले ट्रैकिंग के लिए बेहद फेमस हैं। महाराष्ट्र का मुरुद जिला जंजीरा और खूबसूरत बीच के लिए फेमस है।
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इतिहास कि अनोखी प्रेम कहानी और क्षत्रियों में रक्त की शुद्धता बनाए रखने के संकल्प का उत्तम उद्धारण

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ये चित्र ग्वालियर के गूजरी महल का है जो इतिहास कि शानदार इमारतो में से एक हैं ।
राजपूत राजा राजा मान सिहं तोमर और गुज्जर जाति कि एक आम लडकी ' मृगनयनी ' की ।




उन दिनों अक्सर मुगलों के आक्रमण होते रहते थे। सिकन्दर लोदी और गयासुद्दीन खिलजी ने कई बार ग्वालियर के किले पर धावा किया, पर वे सफल न हो सके। तब उन्होने आसपास के गांवो को नष्ट कर उनकी फसलें लूटना शुरू कर दिया। उन्होने कई मन्दिरों को तोड-फोड डाला और लोगों को इतना तंग किया कि वे हमेशा भयभीत बने रहते। खासकर स्त्रियों को बहुत ही भय रहता। उन दिनों औरतों का खूबसूरत होना खतरे से खाली न रहता। कारण, मुगल उनपर आंखें लगाए रहते थें। गांवों की कई सुन्दर, भोली लडकिंया उनकी शिकार हो चुकी थी।
ऐसे समय में ग्वालियर के पास राई नामक गांव में एक गरीब गुज्जर किसान के यंहा निन्नी नामक एक सुन्दर लडकी थी। सिकन्दर लोदी के आक्रमण के समय उसके माता-पिता मारे गए थें और अब एक भाई के सिवा उसका संसार में कोई न था। वहीं उसकी रक्षा और भरण-पोषण करता था। उनके पास एक कच्चा मकान और छोटा-सा खेत था, जिसपर वे अपनी गुजर करते थे। दोनों भाई-बहिन शिकार में निपुण थें और जंगली जानवार मारा करते थे। दोनों अपनी गरीबी में भी बडे खुश रहते और गांव के सभी सामाजिक और धार्मिक कार्यों में हिससा लेते रहते थे। उनका स्वभाव और व्यवहार इतना अच्छा था कि पूरा गांव उन्हे चाहता था।

धीरे-धीरे निन्नी के अनुपम भोले सौन्दर्य की खबर आसपास फैलने लगी और एक दिन मालवा के सुल्तान गयासुद्दिन को भी इसका पता लग गया। वह तो औरत और शराब के लिए जान देता ही था। उसने झट अपने आदमियों को बुलवाया और राई गांव की खूबसूरत लडकी निन्नी गूजरी को अपने महल में लाने के लिए हुक्म दिया। अन्त में दो घुडसवार इस काम के लिए चुने गए। सुल्तान ने उनसे साफ कह दिया कि यदि वे उस लडकी को लाने में कामयाब न हुए तो उनका सिर धड से अलग कर दिया जाएगा। और यदि वे उसे ले आए तो उन्हें मालामाल कर दिया जाएगा।


निन्नी गूजरी अपनी एक सहेली के साथ जंगल में शिकार को गई थी। उस दिन शाम तक उन्हें कोई शिकार नहीं मिला और वे निराश होकर लौटने ही वाली थी कि उन्हे दूर झाडी के पास कुछ आहट सुनाई दी। लाखी थककर चूर हो गई थी इसलिए वह तो वहीं बैठ गई, किन्तु निन्नी अपने तीर और भालों के साथ आगे बढ गई। झाडी के पास पहूंचने पर उसने शिकार की खोज की, पर उसे कुछ नजर नहीं आया। वह लौटने ही वाली थी कि फिर से आहट मिली। उसने देखा कि झाडी के पास एक बडे झाड के पीछे से दो घुडसवार निकले और उसकी ओर आने लगे। पहले तो निन्नी कुछ घबराई, किन्तु फिर अपना साहस इकट्ठा कर वह उनका सामना करने के लिए अडकर खडी हो गई। जैसे ही घुडसवार उससे कुछ कदम दूरी पर आए, उसने कडकती हुई आवाज हुई आवाज में चिल्लाकर कहा, तुम कौन हो और यहाँ क्यों आए हो ? दोनों सवार घोडो पर से उतर गए। उनमें से एक ने कहा, हम सुल्तान गयासुद्दीन के सिपाही है, और तुम्हे लेने आए हैं। सुल्तान तुम्हे अपनी बेगम बनाना चाहता है। सवार के मुंह से इन शब्दों के निकलते ही निन्नी ने अपना तीर कमान पर चढा उसकी एक आँख को निशाना बना तेजी से फेंका। फिर दूसरा तीर दूसरी आँख पर फेंका, किन्तु वह उसकी हथेली पर अडकर रह गया, क्योंकि सवार के दोनों हाथ आखों पर आ चुके थे। इसी बीच दूसरा सवार घोडे पर चढकर तेजी से वापस लौटने लगा। निन्नी ने उसपर पहले भाले से और फिर तीरों से वार किया। वह वहीं धडाम से नीचे गिर गया। पहले सवार की आंखों से रक्त बह रहा था। निन्नी ने एक भाला उसकी छाती पर पूरी गति से फेंका और चीखकर वह भी जमीन पर लोटने लगा। फिर निन्नी तेजी से वापस चल पडी और हांफती हुई लाखी के घर पहुंची। लाखी पास के नाले से पानी पीकर लौटी थी और आराम कर रही थी। निन्नी से घुडसवारों का हाल सुन, उसके चेहरे का रंग उड गया। किन्तु निन्नी ने उसे हिम्मत दी और शिघ्रता से वापस चलने को कहा।
दूसरे दिन पूरे राई गांव में निन्नी की बहादुरी का समाचार बिजली की तरह फैल गया। ग्वालियर के राजपूत राजा मानसिंह तोमर को भी इस घटना की सूचना मिली। वे इस बहादुर लडकी से मिलने के लिए उत्सुक हो उठे। उसके बाद तो जो भी आदमी राई गांव से आते वे इस लडकी के बारे में अवश्य पूछते। एक दिन गांव का पूजारी मन्दिर बनवाने की फरियाद ले मानसिंह के पास पहुंचा। उसने भी निन्नी की वीरता के कई किस्से राजा को सुनाए। राजा को यह सुनकर बडा आश्चर्य हुआ कि निन्नी अकेली कई सूअरों और अरने-भैंसों को केवल तीरों और भालों से मार गिराती है। अन्त में मानसिंह ने पुजारी के द्वारा गांव में संदेशा भेज दिया कि वे शीघ्र ही गांव का मन्दिर बनवाने और लोगों की हालत देखने राई गांव आएंगे।
राजा के आगमन की सूचना पाते ही गूजरों में खुशी की लहर फैल गई। हर कोई उनके स्वागत की तैयारियों में लग गया। लोगों ने अपने कच्चे मकानों को छापना और लीपन-पोतना शुरू कर दिया। जिनके पास पैसे थे उन्होने अपने लिए उस दिन पहनने के लिए एक जोडा नया कपड बनवा लिया। किन्तु जिनके पास पैसे नहीं थे उन्होने भी नदी के पानी में अपने पुराने फटे कपडों को खूबसाफकर लिया और उत्सुकता से उस दिन की राह देखने लगे। आखिर वह दिन आ ही गया। उस दिन हर दरवाजे पर आम के पतो के बंदनवार बांाधे गए और सब लोग अपने साफ कपडो को पहन, गांव के बाहर रास्ते पर राजा के स्वागत के लिए जमा हो गए। सामने औरतों की कतारें थी। वे अपने सिर पर मिटी के घडे पानी से भरकर रखे थी। और उनपर मीठे तेल के दीये जल रहे थे। सबके सामने निन्नी को खडा किया गया था, जो एक थाली में अक्षत, कुमकुम, फूल और आरती उतारने के लिए घी का एक दीया रखे हुए थी। उसने मोटे, पर साफ कपडे पहने थे। उसके बाजू से गांव का पुजारी था तथा बाकी पुरूष पंक्ति बनाकर औरतों के पीछे खडे हुए थे। जैसे ही राजा की सवारी पहुंची, पूरे गांव के लोगों ने मिलकर एक स्वर से उनकी जय-जयकार की। फिर पुजारी ने आगे बढकर पहले उनका स्वागत किया। उनके भाल पर हन्दी और कुमकुम का टीका लगाया और माला पहनाई। राजा ने ब्राहण के पैर छुए और पुजारी ने उन्हें आर्शीवाद दिया। इसके बाद पुजारी ने राजा को निन्नी का परिचय दिया। निन्नी सिर झुकाए खडी थी। उसने झट कुमकुम, अक्षत राजा के माथे पर लगाया। फूल उनकी पगडी पर फेंके और आरती उतारने लगी। मानसिंह की दृष्टि निन्नी के भोले चेहरे पर अटकी हुई थी। आरती समाप्त होते ही मानसिंह ने देखा कि निन्नी के फेंके फूलों मे से एक जमीन पर गिर पडा हैं। उन्होने झुककर उसे उठाया और अपनी पगडी में खोंस लिया। कई स्त्रियों ने यह दृश्य देखा और आपस में एक दूसरे की तरफ देखते हुए मुस्कराने लगी। विशेषकर लाख चुप न रह सकी और उसने निन्नी को चिमटी देकर चुफ से कान में कह हि दिया-’’राजा ने तुम्हारी पूजा स्वीकार कर ली हैं। अब तो तू जल्दी ही ग्वालियर की रानी बनेगी।‘‘ निन्नी के गोरे गालों पर लज्जा की लालिमा छा गई। ‘चल हट!‘ कहकर वह भीड में खो गई और राजा मन्दिर की ओर चल पडे।



मन्दिर के पास ही राजा का पडाव डाला गया। रात्रि के समय लोगों की सभा में राजा ने मन्दिर बनवाने के लिए पांच हजार रुपयों के दान की घोषणा की। गांव में कुआं खुदवाने तथा सडक सुधारने के लिए दस हजार रुपये देने का वायदा किया। अंत में राजा ने गांव के लोगों को मुगलों से सतर्क रहने और उनका सामना करने के लिए तैयार रहने को कहा। उन्होंने सबके सामने निन्नी की सुनी हुई बहादुरी की भी तारीफ की और दूसरे दिन निन्नी के जंगली जानवरों के शिकार को देखने की इच्छा प्रकट की। पुजारी ने निन्नी के भाई अटल की ओर इशारा किया। अटल ने बिना निन्नी से पूछे खडे होकर स्वीकृति दे दी। इसके बाद बहुत रात तक भजन-कीर्तन हुआ और फिर लोग अपने-अपने घर चले गए।
दुसरे दिन शिकार की तैयारियां हुई। राजा मानसिंह के लिए एक मचान बनाया गया। निन्नी ने अपने सब हथियार साफ करके उन्हें तेज किया। बीच-बीच में निन्नी विचारों में खो जाती। कभी ग्वालियर की रानी बनने की मधुर कल्पना उसे गुमशुदा जाती तो कभी अपने एकमात्र प्रिय भाई का ख्याल, गांव का सुखी, स्वतंत्र जीवन, सांक नदी का शीतल जल, और जंगल के शिकार का आनन्द उसे दूसरे संसार में ले जाते। इसीसमय अटल ने तेजी से घर में प्रवेश किया और निन्नी को जल्दी चलने के लिए कहा। राजा ने जंगल की ओर निकल चुके थं। इसी समय लाखी भी आ गई और निन्नी लाखी के साथ शिकार के लिए चल पडी। कुछ हथियार निन्नी रखे थी और कुछ उसने लाखी को पकडा दिए थे।
जंगल में राजा के आदमी ढोल पीट रहे थे, ताकि जानवर अपने छिपे हुए स्थानों से बाहर निकल पडें। राजा मानसिंह मचान पर बैठे थे। निन्नी और लाखी एक बडे झाड के नीचे खडी हुई थी। थोडी देर के बाद हिरण-परिवार झाडी से निकला और भागने लगा। निन्नी ने एक तीर जोर से फेंका, जो मादा हिरण को लगा, और वही वगिर पडी। नरहिरण तेजी से भगा, पर निन्नी ने उसे भी मार गिराया । इसके बाद निनी ने दौडकर दो हिरण के बच्चों ाके , जो अकेले बच गए थे, उठा लिया और गोद में रखकर झाड के नीचे ले आई। मानसिंह ने यह दृश्य देखा और मन ही मन निन्नी के कोमल हदय की प्रशंसा करने लगे। इसके बाद तो एक-एक करके कई जंगली जानवर बाहर निकले और निनी ने कभी तरों और कभी भलों से उन्हे पहले ही प्रयत्न में मार गिराया। फिर एक बडा जंगली अरना भैंसा निकला। निनी ने पूरी ताकत से दो तीर फेंके, जो सीधे भैंस के शरीर को भेद गए। किन्तु वह गिरा नहीं। घायल होने के कारण वह क्रोध में आकर चिघाडता हुआ निन्नी की ओर झपटा। मानसिंह ने अपनी बदूंक निकाल ली और वे भैंसे पर गोली चलाने ही वाले थे कि उन्होंने देखा-निन्नी ने दौडकर अरने भैसें के सींग पकड लिए है और पूरा जोर लगाकर वह उन्हे मरोड रही है। फिर बिजली की सी गति से उसने एक तेज भाला उसके माथे पर भोंक दिया। भैंसा अतिंम बार जोर से चिघाडा और जमीन पर गिर पडा।
मानसिंह मचान से उतरे और सीधे निनी के पास गए। उन्होंने अपने गले से कीमती मोती की माला उतारी और उसे निन्नी के गले में पहना दी। निन्नी ने झुककर राजा को प्रणाम किया और एक ओर हो गई। लाखी ने देखा, राजा और निन्नी चुप खडे हैं। वह जानवरों के शरीरों से तीर और भाले निकालने का बहाना कर वहंा से खिसक गई। तब मानसिंह ने निन्नी का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा, ’’शक्ति और सौन्दर्य का कैसा सुन्दर मेल है तुममें ! निन्नी, सचमुच तुम तो ग्वालियर के महल मे ही शोभा दोगी। क्या तुम मुझसे विवाह करने के लिए तैयार हो?‘‘ निन्नी के पास जवाब देने के लिए शब्द ही नहीं थें। वह क्षण भर मोन रही ! फिर अत्यंत नम्र और भोले स्वर में बोली-’’ फिर मुझे गांव का यह सुन्दर स्वतंत्र जीवन कहां मिलेगा ! वहां मुझे शिकार के लिए जंगल और जानवर कहां मिलेंगे; और यह सांक नदी; जिसका शीतल जल मुझे इतना प्यारा लगता है वहां कहां मिलेगा? मानसिंह जो निन्नी का हाथ अभी भी अपने हाथों में रखे थे, बोले, ’’तुम्हारी सब इच्छाए वहां भी पूरी होगी। निन्नी, केवल वचन दो, मैं तुम्हारे लिए सांक नदी को ग्वालियर के महल तक ले जा सकता हूँ।‘‘ निन्नी अब क्या कहती। वह चुप हो गई। और मानसिंह उसके मौन का अर्थ समझ गए। इसी समय अटल और अन्य लोग वहां पहुंचे और निन्नी का हाथ छोड राजा मानसिंह उनमें मिल गए।
उसी दिन संध्या समय मानसिंह ने पुजारी के द्वारा अटल गुज्जर के पास निन्नी से विवाह का प्रस्ताव भेजा। पहले अटल विश्वास न कर सका, किन्तु जब स्वंय मानसिंह ने उससे विवाह की बात कही, तब तो अटल की खुशी का ठिकाना न रहा। दूसरे ही दिन विवाह होना था। अटल इंतजाम मे लग गया। लोग उससे पूछते कि वह पैसा कहाँ से लाएगा और इतना बडा ब्याह कैसे करेगा? अटल गर्व से जवाब देता, ’’मै कन्या दूंगा और एक गाय दूंगा। सूखी हल्दी और चावल का टीका लगाऊगा। घर में बहुत से जानवरों के चमडे रखे हैं उन्हे बेचकर बहन के गले के लिए चांदी की एक हसली दुंगा और क्या चाहिए?‘‘ मानसिंह ने अटल की कठिनाईया सुनी तो उसे सदेंशा भेजा कि वे ग्वालियर से शादि करने को तैयार है और दोनों तरफ का खर्चा भी वे पूरा करेंगे।इससे अटल के स्वाभिमान को बड धक्का पहुंचा। उसने तुरन्त संदेशा भेजा कि उसे यह बात मंजूर नहीं। आज तक कहीं ऐसा नहीं हुआ कि लडकी को लडके के घर ले जाकर विवाह किया गया हो गरीब से गरीब लडकी वाले भी अपने घर में ही लडकी का कन्यादान देते हैं। इस पर मानसिंह चुप हो गए।
अटल ने रात भर जागकर सब तैयारिया की। उसने जंगल से लडकी और आम के पते लाकर मांडप बनाया अनाज बेचकर कपडे का एक जोडा निन्नी के लिए तैयार किया तथा गांव वालों ाके बांटने के लिए गुड लिया। इस तरह दूसरे दिन वैदिक रीति से राजा मानसिंह और निन्नी का ब्याह पूरा हुआ। गांव के लोगों से जो कुछ बन पडा उन्होने निन्नी को दिया। विदा के समय निन्नी अटल से लिपटकर खूब रोई। उसने रोते हुए कहा, ’’भैया अब लाखी को भाभी बनाकर जल्दी घर ले आओं तुम्हे बहुत तकलीफ होगी।‘‘ भाई ने उसे आश्वासन दिया और इस प्रकार निनी भाई की झोपडी को छोड ग्वालियर के महल के लिए रवाना हो गई।
विवाह के बाद महल कि राजपूत राणियो ने गुज्जर जाति कि रानि का विरोध किया इसी कारण राणा जी मे '' गुजरी महल '' का निर्माण करवाया ।
यही गूजर किसान की लडकी निन्नी, जिसका नाम असल में मृगनयनी था, ग्वालियर की गूजरी रानी के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुई। उसमें जैसी सौन्दर्य की कोमलता थी, वैसी ही शूर वीरता भी थी। राजा मानसिंह उसे बहुत ही चाहते थे और कुछ समय तक ऐसा लगा कि राजा उसके पीछे पागल है किन्तु निन्नी ने उन्हे हमेशा कर्तव्य कि और प्रेरित किया वह सव्य संगित व चित्रकला सिखने लगी जिससे उसका समय व्यस्त रहता और मानसिंह भी उस समय अपने राज्य के कार्यो में लगे रहते युद्व के समय निन्नी हमेशा मानसिंह को उत्साहित कर प्रजा के रक्षा के लिए तत्पर रहती इस प्रकार निन्नी सचमुच एक योग्य कुशल रानी सिद्व हुई उसने राज्य में सगींत, चित्र, कला, शिल्पकला को प्रोत्साहन करना बैजू नामक प्रसिद्व गायक ने किसी समय नई-नई राग-रागिनाए बनाई थी ग्वालियर में बने हुए मान मन्दिर और गूजरी महल आज भी उस समय की उन्नत शिल्पकला के नमूने है राई गांव से गूजरी महल तक बनी हुई नहर जिसमें सांक नदी का जल ग्वालियर तक ले जाया गया था आज भी दिखाई देता है।
इनके पुत्र को क्षत्रिय राजपूतों मे शामिल नहीं किया । क्योकि क्षत्रिय वो है जो एक क्षत्राणि की कोख से जन्मा हो।
मृगनयनी से दो पुत्र हुए जिन्हें लेकर गुर्जरी महल छोड़ टिगड़ा के जंगलो में चली गयी उन्होंने एक नया गोत्र अपनाया जो आज गुर्जुर में आता है ...^तोंगर^ जिसका अर्थ यह है
तोमर+गुर्जर = तोंगर
इसलिए मृग्नयनि पुत्र को कुछ जागीर देकर गूजरों मे शामिल किया गया।
ये राजपूत राजा मानसिंह तोमर के गूजरी पत्नी के वंशज आज तोंगर गुज्जर कहलाते हैं और तोमर राजपूतो को चुनाव में समर्थन कर उनके प्रति सम्मान दिखाते हैं।
इसी तरह राजपूत पुरुशों के दूसरी जाति की महिल/सम्बन्ध से उन जातियों में चौहान तोमर गहलौत परमार सोलँकि वंश चले हैं।ये राजपूतों की उदारता को भी प्रदर्शित करता है।
इस प्रकार राजपूत राजा की गूजरी रानी निन्नी/मृगनयनी ने ग्वालियर के तौमर राज्य में चार चांद जोड दिए और उस काल को इतिहास में अमर कर दिया।
नोट-हिसार हरियाणा का गूजरी महल एक मुस्लिम सुल्तान ने अपनी गूजरी प्रेमिका के लिए बनवाया था वो ग्वालियर के गूजरी महल से अलग है।इसमें भृमित न हों।
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राजस्थान का किला जहां से चांदी के गोले बरसाए गए

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        चूरू का किला इस किला का निर्माण ठाकुर कुशाल सिंह ने 1739 में करवाया था।1857 के विद्रोह में ठाकुर शिव सिंह ने अंग्रेजों का विरोध किया इस पर अंगेजों ने बिकानेर कि सेना लेकर चुरू दुर्ग को चारों और से घेर कर तोपों से गोला बारी की बरसात की जबाव में दुर्ग से गोले बरसाए गये लेकिन जब दुर्ग में तोप के गोले समाप्त होने गले तो लुहारों ने नये गोले बनाये लेकिन कुछ समय पश्चात गोला बनाने के लिए सीसा समाप्त हो गया। इस पर सेठ साहुकारों और जनसामन्य ने अपने घरों से चांदी लाकर ठाकुर को समर्पित किया। लुहारों व सुनारों ने चांदी के गोले बनाये जब तोप से चांदी के गोले निकले तो शत्रु सेना हेरान हो गयी। और जनता की भावनाओं का आदर करते हुए दुर्ग का घेरा हटा लिया।


इस पर एक लोकोक्ति प्रचलित है -


धोर ऊपर नींमड़ी धोरे ऊपर तोप।



चांदी गोला चालतां, गोरां नाख्या टोप।।



वीको-फीको पड़त्र गयो, बण गोरां हमगीर।



चांदी गोला चालिया, चूरू री तासीर।।








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