चूरू का किला इस किला का निर्माण ठाकुर कुशाल सिंह ने 1739 में करवाया था।1857 के विद्रोह में ठाकुर शिव सिंह ने अंग्रेजों का विरोध किया इस पर अंगेजों ने बिकानेर कि सेना लेकर चुरू दुर्ग को चारों और से घेर कर तोपों से गोला बारी की बरसात की जबाव में दुर्ग से गोले बरसाए गये लेकिन जब दुर्ग में तोप के गोले समाप्त होने गले तो लुहारों ने नये गोले बनाये लेकिन कुछ समय पश्चात गोला बनाने के लिए सीसा समाप्त हो गया। इस पर सेठ साहुकारों और जनसामन्य ने अपने घरों से चांदी लाकर ठाकुर को समर्पित किया। लुहारों व सुनारों ने चांदी के गोले बनाये जब तोप से चांदी के गोले निकले तो शत्रु सेना हेरान हो गयी। और जनता की भावनाओं का आदर करते हुए दुर्ग का घेरा हटा लिया।
इस पर एक लोकोक्ति प्रचलित है -
धोर ऊपर नींमड़ी धोरे ऊपर तोप।
चांदी गोला चालतां, गोरां नाख्या टोप।।
वीको-फीको पड़त्र गयो, बण गोरां हमगीर।
चांदी गोला चालिया, चूरू री तासीर।।
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