"आनन्द मोहन सिंह" जिसने सारा जीवन क्षत्रिय समाज और गरीब स्वर्णो,मजलुमो के हक की लड़ाई लड़ने में न्यौछावर कर दिया।

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"आनन्द मोहन सिंह"
बिहार का एक क्षत्रिय शेर जो सिर्फ इसलिए जेल में उम्रकैद की सजा काट रहा है क्योंकि उसने सारा जीवन क्षत्रिय समाज और गरीब स्वर्णो,मजलुमो के हक की लड़ाई लड़ने में न्यौछावर कर दिया।


जब इंद्र कुमार गुजराल के बाद देश में अटल बिहारी वाजपेयी की 13 महीना चलने वाली सरकार बनी थी तब एनडीए से 45 राजपूत सांसद जीतकर पहुंचे थे।पर क्षत्रिय विरोधी आडवाणी के दबाव में एक भी राजपूत को केंद्र सरकार में मंत्री नही बनाया गया था।पर किसी की हिम्मत नही हुई इस अन्याय का विरोध करने की।

तब निर्दलीय सांसद आनन्द मोहन सिंह ने संसद में ललकार लगाई कि---


""ए अटल आडवाणी जी,आपकी सरकार बनवाने में सबसे बड़ा योगदान राजपूतो का है फिर भी आपने 45 राजपूतो में किसी को भी मंत्री क्यों नही बनाया???"


यह सुनकर अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी को सांप सूंघ गया और सत्ता पक्ष द्वारा मार्शलो को इशारा किया गया।मार्शल आनन्द मोहन जी को उठाकर जबरन सदन से बाहर ले गए।इस हाथापाई में आनन्द जी का हाथ शीशे से टकरा गया।और वो लहूलुहान हो गए।।।।।।।।।


वो लहुलुहान हो गए मगर जिन मुर्दो के हक की वो मांग उठा रहे थे उनमे एक भी उनके पक्ष में सामने नही आया!!!!!! तो खैर कोई बात नही।हर किसी में शेर का जिगर नही होता।

एक बार जब खालिस्तानी नेता सिमरनजीत सिंह मान चुनाव जीतकर आया और वो अपना धार्मिक अधिकार कहते हुए संसद में तलवार ले जाने की जिद पर अड़ गया और सरकार दबाव में आकर उसे इजाजत देने लगी तो आनंद मोहन जी ने अपने को क्षत्रिय होने के नाते संसद में पिस्तौल ले जाने की बात कही, तब सरकार को झुकना पड़ा.

अपने इसी शेरदिल अंदाज की वजह से वो राजपूत विरोधियो की आँखों में खटक गए और नितीश कुमार,लालू यादव, सुशील मोदी सबने मिलकर उन्हें एक झूठे हत्या के मुकदमे में फसाकर उम्रकैद की सजा करवा दी।

और आज आनन्द मोहन सिंह उस अपराध के लिए उम्रकैद की सजा भुगत रहे हैं जो उन्होंने किया ही नही है।

दस साल से उनके घर में कोई त्यौहार कोई ख़ुशी नही मनाई गयी।पिता के प्यार से वंचित उनके पुत्र चेतन को अपने सहपाठियों का उपहास और ताने झेलने पड़े।पत्नी लवली आनंद और परिवार ने कैसे वियोग में समय काटा होगा??
आज उनकी अनुपस्थिति में उनके युवा पुत्र चेतन उनकी मशाल को आगे बढ़ा रहे है।


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