बद्रीनाथ की एक बहुत ही पौराणिक कथा है। इस स्थान पर भगवान शिव और माता पार्वती रहा करते थे। 10,000 फिट हिमालय की ऊंचाई पर स्थित यह एक शानदार जगह है। एक दिन नारद मुनि, भगवान नारायण जी के पास गए और कहा, “आप मानवता के लिए एक बुरे उदाहरण बनते जा रहे हैं। हर समय आप केवल यु ही लेटे रहते हैं। आदिशीशा और मां लक्ष्मी आपकी सेवा में हर वक्त लगे रहते हैं और आप आलस से भरते जा रहे हैं। आप बिल्कुल भी अच्छा उदाहरण नहीं रहेंगे दुनिया के बाकी जीव जंतुओं के लिए अगर आप यु ही आलस करते रहेंगे। दुनिया में बाकी जीव जंतुओं के लिए आपको अवश्य कुछ करना चाहिए, आपको कुछ बड़ा योगदान देना चाहिए प्रभु!
इस समालोचना से निकलने के लिए और अपने नाम को ओर बड़ा करने के लिए भगवान विष्णु हिमालय आए और एक उत्तम स्थान देखने लगे, जहां बैठ कर वह तपस्या कर सकें। उन्होंने बद्रीनाथ को देखा और उनको वह स्थान बहुत ही प्रिय लगा। बिल्कुल वैसा ही था बद्रीनाथ जैसा उन्होंने सोचा था — एक पर्याप्त स्थान उनकी साधना के योग्य।
उन्होंने वहां पर एक छोटी सी कुटिया देखी और भगवान विष्णु उस कुटिता के अंदर चले गए। तब उन्होंने यह देखा कि यह कुटिया तो भगवान शिव का घर है, और उनके घर पर यु ही जाना तो भयावह है। अगर उनको क्रोध आ गया तो बहुत ही भयानक होगा।
तब नारद मुनि जी ने अपना रुप बदल कर एक छोटे से बच्चे का रूप धारण कर लिया और भगवान शिव के घर के बाहर बैठ गए। भगवान शिव और माता पार्वती, जो कि बाहर गए हुए थे, जब घर लौटे तो उन्होंने देखा एक छोटा बच्चा रो रहा था। बच्चे को यूं रोता देख माता पार्वती का दिल पिघल गया, और उनका मन किया कि वह बच्चे को गले लगाएं और गोद में उठा ले। जैसे ही माता पार्वती आगे बढ़ी तो भगवान शिव ने उनको रोक दिया और कहां,” उस बच्चे को मत छूना” और माता पार्वती ने कहा “आप कितने करुर है, आप ऐसा कैसे कह सकते हैं।”
तब भगवान शिव ने कहा “यह कैसे हो सकता है कि इतना छोटा सा बच्चा खुद ही हमारे दरवाजे पर आ पहुंचा। यहां तो आगे पीछे कोई भी नहीं, ना ही बच्चे के माता-पिता के पैरों के निशान है। यह एक बच्चा नहीं हो सकता।” लेकिन माता पार्वती ने कहा “मैं इस बच्चे को रोते हुए नहीं देख सकती, मेरे अंदर की ममता एक बच्चे को यू रोते हुए नहीं छोड़ सकती।” और यह कहते हुए उन्होंने बच्चे को उठाया और घर के अंदर ले गई। बच्चा बहुत ही आनंदपूर्वक उनकी गोद में बैठा खेल रहा था, और हर्ष पूर्वक भगवान शिव को देखे जा रहा था। भगवान शिव तो अंतर ज्ञानी है, उन्हें इसका परिणाम भलीभांति ज्ञात था, फिर भी उन्होंने माता पार्वती को कहा “ठीक है, चलो देखते हैं क्या होता है।”
माता पार्वती बच्चे के साथ खेलते खेलते उसे खाना भी खिला रही थी। जब बच्चा सो गया तो माता पार्वती भगवान शिव जी के साथ पास ही के एक पवित्र जल सरोत स्नान के लिए गई। जब वह वहां से वापिस लौटे तो उन्होंने अपने ही घर का दरवाजा अंदर से बंद पाया। माता पार्वती भोचक्का रह गई और हैरानी में कहा “किसने किया होगा अंदर से दरवाजा बंद?” तब भगवान शिव जी ने कहा “मैंने तुम्हें कहां था, इस बच्चे को मत उठाओ। तुम वह बच्चे को घर के भीतर ले आई अब उस बच्चे ने ही घर के दरवाजे को अंदर से बंद कर दिया है।”
माता पार्वती जी ने पूछा “अब हमें क्या करना चाहिए?”

तब भगवान शिव जी के पास दो ही रास्ते थे: एक रास्ता था कि वह सब कुछ जलाकर नष्ट करदे और दूसरा रास्ता था की कोईओर मार्ग ढूंढें और वहां चले जाए। तब उन्होंने निर्णय लिया कि वह कहीं ओर जाएंगे क्योंकि वह बच्चा माता पार्वती को बहुत प्यारा लगता था और भगवान शिव उसे कोई कष्ट नहीं पहुंचाना चाहते थे।
इसी तरह भगवान शिव जी ने अपना घर खो दिया और भगवान शिव और माता पार्वती एक जगह से दूसरी जगह यूं ही रहने लगे। वह एक स्थान से दूसरे स्थान जाते और एक आदर्श स्थान चुनते और फिर वहां रहते। अतः उन्होंने केदारनाथ को चुना।
ऐसा होगा या वह कौन से स्थान में जाएंगे क्या भगवान शिव को इसके बारे में मालूम नहीं था? ऐसा बहुत से लोग सोचेंगे और पूछेंगे भी, लेकिन बहुत बार ऐसा होता है की हम सब जानते भी है, फिर भी उसे होने देते हैं, इसी को तो कहते हैं ना विधि का विधान।
भगवान विष्णु जी ने नारद जी के साथ मिलकर ऐसा क्यों किया? आप शायद यही सोच रहे होंगे! भगवान विष्णु ने केवल अपनी साधना के लिए नहीं लिया था वह घर बल्कि एक बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य की पूर्ति के लिए ही भगवान विष्णु जी ने भगवान शिव से वह स्थान लिया था।
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