इतिहास साक्षी है कि उसने सोमनाथ मंदिर को पूरी तरह तहस नहस कर दिया और वहां के चढ़ाए हुए खजाने के साथ प्राचीन भगवान शिव की मूर्ति को अपने साथ उठा ले गए। इसके बाद भी उसने कच्छ, जूड, नागरकोट, उज्जैन, कलिंजार रियासतों को बूरी तरह रौंदा और माहेश्वर, ज्वालामुखी, नरूनकोट और द्वारका के मंदिरों को भी नष्ट कर दिया। महमूद ने अल्लाह को हिंदु भगवानों से ऊपर बताते हुए हिंदु मूर्तियों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया और हिंदु धर्म को मानने वाले लोगों की भावनाओं को सबसे ज्यादा ठेस पहुंचाई। उस पर हमला ना हो सके इसलिए महमूद किसी भी स्थान पर लंबे समय तक नहीं ठहरता था।
जब वह सोमनाथ के मंदिर को लूटकर राजस्थान के रास्ते जा रहा था तभी अजमेर के राजा धर्मदेव ने उससे कड़ा मुकाबला किया। उस समय गुजरात के सारे राजा और जमींदार भी अजमेर के राजा के साथ खड़़े हुए और महमूद को कड़ी टक्कर दी। सबका लक्ष्य महमूद के द्वारा चुराई हुई भगवान सोमनाथ की मूर्ति को बचाना था लेकिन महमूद इतना शातिर था कि वह उल्टे पांव भाग खड़ा हुआ। उस रास्ते पर उज्जैन सम्राट भोज की शक्तिशाली सेना उसकी प्रतीक्षा कर रही थी लेकिन धूर्त महमूद ने थार के रेगिस्तान के रास्ते लाहौर पहुंचने की कोशिश की। यह रास्ता बहुत कठिन था ओर महमूद तथा उसकी सेना रेगिस्तान की गर्मी सहन नहीं कर पाई और अंततः उसकी मृत्यु हो गई।
इतिहासकार अल बरूनी का कहना है कि महमूद ने भारत की संपन्नता और वैभव को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचाया जिससे हिंदु बहुत ज्यादा नराज हुए। महमूद के बारे में एक और सच यह जानने को मिलता है कि उसका अपने ही गुलाम मलिक अयाज़ के साथ समलैंगिक संबंध थें। जबकि इस्लाम में ऐसा करना बहुत बड़ा गुनाह माना जाता है। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि वह स्त्री और पुरूष दोनों के प्रति आकर्षण रखता था। तबाकत ए नासिरी के मुताबिक महमूद भगवान सोमनाथ की मूर्ति को ना सिर्फ चुरा कर ले गया था बल्कि उसने मूर्ति के चार टुकड़े भी किए। ये टुकड़े उसने मक्का मदीना की मस्जिदों के फर्श पर रखवाए ताकि इन टुकड़ों को पैरों तले रौंदा जा सके। लेकिन इस घटना की सत्यता की प्रमाणिकता पर संदेह है।
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