“गोलियों की बौछार से मैं बच कर भागी। इस वजह से मैं अपने परिवार से बिछड़ गई। मेरे साथ मेरे पति थे। हम कस्बे से कुछ दूर ही गए होंगे, तभी दंगाइयों ने हमें घेर लिया। उनके हाथों में कुल्हाड़ी, तलवार, फरसा आदि हथियार थे। महिलाओं और पुरुषों को अलग कर दिया गया। मेरे साथ करीब 30 से 40 महिलायएं थी जो एक अंधेरे कमरे में रहम की भीख मांग रही थीं। हम सब के साथ बारी-बारी कई बार यौन शोषण किया गया। चार दिन तक मुझे पाकिस्तान के कई हिस्सो में रखा गया, फिर मुझे मंडी ले जाया गया, जहां मुझे 20 रुपए में बेच दिया गया।”
यह दिल दहला देने वाली कहानी हरभजन कोर जी की है जो मीरपुर (आज का पाकिस्तान) की रहने वाली थी।
यह दिल और रुह को कम्पा देने वाली कहानी बालके. गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तक
फॉरगॉटन एट्रोसिटीज़: मेमोरीज़ ऑफ़ अ सर्वाइवर ऑफ़ द 1947 पार्टीशन ऑफ़ इंडिया का अंश है।
बालके गुप्ता ने इस पुस्तक के जरिए मीरपुर में हुए नरसंहार को दुनिया के सामने प्रस्तुत करने की कोशिश की है। वह लोग जिन पर बटवारे के वक्त मीरपुर में जुल्म हुआ जिन लोगों को दुनिया भुला चुकी है उनके दर्द को दुनिया के सामने लाने का एक छोटा सा प्रयास है यह पुस्तक।
उस नरसंहार से बचने वालों में गुप्ता भी एक थे।
बटवारे से पूर्व कश्मीर रियासत का हिस्सा हुआ करता था मीरपुर। जहां करीब बटवारे के समय 18000 लोगों ने अपनी जान गंवाई।
मीरपुर का दर्द केवल इतना ही नहीं है यहां तक की वहां 5000 महिलाओं को ज़ोर ज़बरदस्ती से खाड़ी के देशों में और पाकिस्तान के विभिन्न इलाकों में 20-20 रुपए में बेच दिया गया।
सत्य यह भी है कि 27 अक्टूबर 1947 में मीरपुर रियासत भारत को मिलने का निर्णय हुआ था, किंतु उससे पहले ही पाकिस्तान ने मीरपुर पर अपना कब्जा जमा लिया।
उस समय यह क्षेत्र कश्मीर की सेना की एक छोटी सी टुकड़ी के सहारे था। जब पाकिस्तान ने इस पर जोर जबरदस्ती से अपना कब्जा जमा लिया तो तनाव बहुत बढ़ गया, किंतु भारत सरकार कश्मीर के मामले में अपना दखल नहीं देना चाहती थी, जिस कारण पाकिस्तान की सेना कश्मीर की छोटी सी सेना के आगे एक बड़ा पहाड़ सा साबित हुई।
बालके गुप्ता की इस पुस्तक में इस बात का भी वर्णन है की मीरपुर से कुछ प्रतिनिधि उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु से कश्मीर में मिले। उस मुलाकात में मीरपुर के बिगड़ते हालातों पर चर्चा हुई किंतु भारत सरकार इस मामले को लेकर कोई गंभीर निर्णय नहीं ले सकी। मीरपुर में रहने वाले सभी निवासी भारत को अपना देश मानते थे और इस उम्मीद में थे की भारत सरकार उनके लिए प्रयाप्त कदम जरूर उठाएगी पर उस समय की भारत सरकार मीरपुर वासियों के लिए कुछ नहीं कर पाई।
उसके बाद वहां जो भी हुआ वह मानव इतिहास पर एक काला धब्बा है। पाकिस्तानी सेना ने 25 नवंबर को मीरपुर पर हमला कर उसे अपने कब्जे में ले लिया। जो भी वहां पाकिस्तानी सेना को नजर आता उसे वो मार देते। उस समय तो पाकिस्तानी सेना ने हर तरफ लूट-मार मचा रखी थी। जबरन 5000 युवा लड़कियों को पाकिस्तानी सेना ने बंधक बना लिया और अपहरण कर पाकिस्तान लेकर उनको मंडी में जाकर बेच दिया। 10 से 20 रुपये में युवा लड़कियों की बोली लगाई गई।
आज वैसे तो मीरपुर पाकिस्तान में है लेकिन उस मीरपुर का दर्द आज भी हिंदुस्तान के सीने में दफन है और ना जाने क्यों हिंदुस्तान ही खुद उन जख्मों को छुपाने में लगा है, मगर हम सब यह भूल रहे हैं की इतिहास हमेशा कुछ सबक सीखा जाता है और जो लोग अपने इतिहास को भूल जाते हैं उन्हें फिर गुलामी की बेड़ियों से खतरा बना रहता है।
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