इस लेख में टीपू सुल्तान को औरंगजेब कहा गया है क्योंकि उसने भी औरंगजेब की तरह गैर मुस्लिमो पर, चाहे वह हिंदू हो या इसाई, जुल्म डाया और अनेक लोगों का जबरन धर्म परिवर्तन किया। अनगिनत संख्या में मंदिरों को तोड़ा और चर्चो का भी विध्वंस किया। लिख में तो उसके ऊपर खूब आरोप लगाए गए हैं। यहां तक कि यह भी कहा गया है जिस टीपू सुल्तान को देश भक्त और स्वतंत्रता सेनानी कहां जाता रहा है उसके इतिहास पर अगर गोर से नजर डाले तो मालूम पड़ेगा कि वह कोई देशभक्त नहीं बल्कि देशद्रोही था। जो देश के ही लोगों को मारने पर आमादा हो वह देश भक्त कैसे हो सकता है?
लेख में यह भी सवाल उठाया गया है कि इस बात को लेकर क्यों इतिहासकार अपनी आवाज नहीं बुलंद करते? क्यों वह इस बारे में चर्चा भी करना पसंद नहीं करते? अगर उनको इस बारे में मालूम ही नहीं है तो वह किस बात के इतिहासकार है? टीपू सुल्तान के बारे में सारे तथ्य संयोगवश अभिलेखागारो मैं उपलब्ध है। दुर्भाग्य तो यह है कि वे सभी तथ्य होने के बावजूद भी ना तो कर्नाटक सरकार ने उन तथ्यों को जानने की कोशिश की और ऊपर से एक देशद्रोही को देशभक्त बनाकर उसकी जयंती का धूमधाम से प्रदर्शन कर रहे हैं। यह भारत के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है क्यों कांग्रेस सरकार ने टीपू जयंती को मनाने का फैसला लिया? कौन से इतिहासकार की बातें सुनती है कांग्रेस? यहां तक की कांग्रेस ने तो टीपू जयंती भी गलत तारीक पर मना डाली। टीपू का जन्मदिन तो 20 नवंबर को पड़ता है लेकिन कांग्रेस ने 10 नवंबर, जिस दिन छोटी दीवाली थी, उस दिन मनाने का फैसला लिया।
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