इस किले की दीवारों से निकलता था खून, सहमे थे लोग

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विश्व के प्राचीन व विशाल किलों में शुमार रोहतास गढ़ किला अपने स्वर्णिम इतिहास की जगह उपेक्षा की दास्तां बयां करने को विवश है। वह इमारत ध्वस्त हो रही है, जहां के कण-कण में सैकड़ों वर्षों का इतिहास छिपा है। वहां पशु बांधे जा रहे हैं और भारतीय पुरातत्व संरक्षण विभाग मौन है। वर्षों तक नक्सलियों ने इस पर कब्जा कर रखा था और अब मुक्त होने के बाद भी इसे सहेजने की दिशा में कोई पहल नहीं हो रही है।



मीर कासिम के पराजय के साथ शुरू हुआ पतन:-
इसे अक्टूबर 1764 में बक्सर युद्ध में मीर कासिम अली के पराजित होने के बाद कैप्टन थॉमस ने तहस-नहस कर दिया था। जहां से 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेज ब्रिगेडियर डगलस ने मेजर हेनरी हैवलॉक की मदद से स्वतंत्रता सेनानियों को निकाल बाहर किया था। 1990 के दशक में इस किले पर नक्सलियों का साम्राज्य स्थापित था। नक्सली इस किले में अदालत लगाकर फैसला सुनाने और सजा मुकम्मल करने का काम किया करते थे। अभी हाल में रोहतास पुलिस ने नक्सलियों के चंगुल से इस किले को मुक्त किया है। लेकिन अभी भी यह किला अपनी बदहाली की दास्तां बयां कर रहा है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग से संरक्षित होने के बावजूद इसके भवनों के ऊपर पेड़ उग आये हैं। यहीं नहीं मुख्य किला के अंदर के भवन ध्वस्त होने की कगार पर हैं।


बिहार, झारखंड, बंगाल और उड़ीसा तक के लिए यहां से जारी होते थे फरमान
रोहतास जिले के इतिहासकार श्याम सुंदर तिवारी के अनुसार रोहतास गढ़ से खरवार, चेरों, उरांव, मुण्डा सताल आदि जनजातियों का प्राचीन काल से संबंध रहा है। जिसे अकबर के समय में 1587 ई में राजा मान सिंह ने रोहतासगढ़ को अपनी प्रांतीय राजधानी बनाया और संयुक्त बिहार बंगाल यानी बंगलादेश से लेकर पूरा बिहार, झारखण्ड, ओडिशा की यह राजधानी रही है। इस किले से ही राजा मान सिंह अपने सल्तनत की बागडोर संभालते थे। उस समय यहां महत्वपूर्ण निर्माण 


स्मारक नष्ट करने की स्थिति में दंड का प्रावधान
कभी राजा मान सिंह जैसे शासक की सत्ता का केंद्र रह चुका यह किला अब प्रशासनिक उदासीनता के कारण पशुओं का बथान बना हुआ है। गाजी दरवाजे के पास स्थित हब्स खां का मस्जिद, मदरसे और मकबरे तथा नागा टोली के पास की शेरशाही मस्जिद के पास लगे भारतीय पुरातत्व संरक्षण के सूचना पटल के अनुसार यह स्मारक संरक्षित है। स्मारक नष्ट करने की स्थिति में दंड का प्रावधान भी है। लेकिन इन चारों स्मारकों के अंदर अब पशु बांधे जा रहे हैं। लगभग छह महीने पहले मेघा घाट रास्ते की किला बंदी की मरम्मत हुई थी। लेकिन यह फिर ध्वस्त हो रही है।


अंधविश्वास या सच!
दो हजार फीट की उंचाई पर स्थित ये किला 25 किलोमीटर तक फैला हुआ है। इस किले के बारे में कहा जाता है कि कभी इस किले की दिवारों से खून टपकता था। फ्रांसीसी इतिहासकार बुकानन ने लगभग दो सौ साल पहले रोहतास की यात्रा की थी, तब उन्होंने पत्थर से निकलने वाले खून की चर्चा एक दस्तावेज में की थी। उन्होंने कहा था कि इस किले की दीवारों से खून निकलता है। वहीं, आस-पास रहने वाले लोग भी इसे सच मानते हैं। वे तो ये भी कहते हैं कि इसमें से बहुत पहले आवाज भी आती थी। लोगों का मानना है कि वह संभवत: राजा रोहिताश्व के आत्मा की आवाज थी।
इतिहासकार हो या पुरातत्व के जानकार, वे भी नहीं जानते कि आखिर ऐसी क्या बात थी जो किले के दीवारों से खून निकलता था। यह अंधविश्वास है या सच- ये रहस्य तो इतिहास के गर्त में ही छिपा है।
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