अम्बेडकर ने भी माना था कि ये “गांधी” नहीं “नेताजी”थे, जिनके दम पर मिली थी आज़ादी

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फरवरी 1955 में बीबीसी को दिए गए एक साक्षात्कार में बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने अंग्रेजों के भारत छोड़ने के सही कारण पर प्रकाश डाला था। इसके तुरंत बाद ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री क्लीमेंट रिचर्ड एटली ने यह स्वीकार किया था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस वह महत्वपूर्ण कारण थे जिसकी वजह से अंग्रेजों को सन् 1947 में भारत छोड़ना पड़ा था। कई रक्षा और इंटेलीजेंस ने भी तब यह बात स्वीकार की थी। ऐसा क्यों है कि 70 साल के बाद भी भारत के लोग नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में सच जानना चाहते हैं ? तमाम रहस्यों और उन लोगों के बयान, जिन्होंने आजादी की लड़ाई को काफी करीब से देखा था, के सामने आने से यह बात साफ होती है कि वह नेताजी थे जिन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम किया था और भारत को आजादी दिलाई थी।
राजनीतिक कारणों से भारत की पिछली सरकारों ने स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी की सर्वश्रेष्ठ भूमिका को कभी स्वीकार नहीं किया। वास्तविकता यह है कि द्वितीय विश्व युद्ध के सन् 1939 में शुरू होने के बाद कोई स्वतंत्रता संग्राम हुआ ही नहीं। एक तरफ जहां बोस यह चाहते थे कि कांग्रेस पार्टी अंग्रेजों को 6 महीने का भारत छोड़ने का अल्टीमेटम दे तो वहीं महात्मा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी ने गोरी हुकुमत पर दबाव बढ़ाने के लिए कुछ भी नहीं किया। कांग्रेस पार्टी से निकाले जाने के बाद नेताजी ने भारत छोड़ दिया और जापान जाकर आजाद हिंद फौज सेना में शामिल हो गए। कई लोग आजाद हिंद फौज को आज भी एक असंगठित और कम प्रशिक्षित सेना मानते हैं पर यह भूल जाते हैं कि इस काम के लिए कितना कम समय नेताजी के पास था।
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जब आजाद हिंद फौज ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध के मैदान में मोर्चा खोला उसी समय महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरूआत की। गांधी के द्वारा सन् 1942 में शुरू किया गया यह आंदोलन बोस के सन् 1939 में प्रस्तावित  किए आंदोलन जैसा ही था। यह आंदोलन सही समय पर शुरू तो हुआ था लेकिन दुर्भाग्य वश  3 हप्तों के अंदर ही इसे दबा दिया गया और 1 महीने के अंदर तो यह आंदोलन पूरी तरह खत्म हो गया। इसलिए यह कहना कि भारत छोड़ो आंदोलन से देश को आजादी मिली, कहीं से भी सही नहीं है। फिर ऐसा क्या था जिसने भारत को आजादी दिलाई ?

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इसका जवाब बाबा साहेब अंबेडकर ने बीबीसी के पत्रकार फ्रांसिस वाट्सन को इंटरव्यू में कुछ ऐसे दिया है, “मैं नहीं जानता कि अचानक एटली जी को क्या हुआ कि उन्होंने अचानक ही भारत को आजादी दे दी। यह रहस्य वह निश्चित ही अपनी जीवनी में सबके सामने लाएंगे, इससे ज्यादा कुछ उम्मीद नहीं की जा सकती। फिर भी लेबर पार्टी द्वारा लिए गए इस निर्णय की वजह सिर्फ यही हो सकती है कि सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद सेना ने अंग्रेजों का यह भ्रम तोड़ दिया कि चाहे भारत में कुछ भी हो जाए, चाहे इस देश के नेता कुछ भी कर लें वे सैनिकों की वफादारी कभी नहीं तोड़ सकते। यह अंग्रेजी हुकुमत को एक बहुत बड़ा झटका था जिसके दम पर वह कई सालों से भारत पर राज कर रहे थे। इस घटना ने उनको झकझोर कर रख दिया जब उन्होनें पाया कि सैनिक भी बगावत कर सकते हैं।”

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अगस्त 1956 में अंबेडकर के देहांत के दो महीने के अंदर ही क्लीमेंट एटली ने कोलकाता गर्वनर हाउस पर आयोजित एक डिनर में तत्कालीन कोलकाता उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस पी बी चक्रवर्ती के सामने यह बात स्वीकार कर ली थी। जब जस्टिस चक्रवर्ती ने उनसे पूछा कि गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन के कई वर्षों के पश्चात ऐसी क्या परिस्थितियां थी कि 1947 में आपलोगों को भारत छोड़ना पड़ा? एटली ने जवाब में कहा कि भारत की थल सेना और नौ सेना में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ चल रही विद्रोह की भावना मुख्य कारण थी जिसे सुभाष चंद्र बोस के सैन्य कार्यकलापों ने जन्म दिया था। डिनर के अंत में जब जस्टिस चक्रवर्ती ने एटली से यह पूछा कि ब्रिटिश सरकार के भारत छोड़ने के निर्णय में गांधी का क्या प्रभाव था तो एटली ने ताना मारने के अंदाज में अपने होठों को सिकोड़ा और बोला “ब-हु-त ही क-म”।

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नवम्बर 1945 के दौरन तत्कालिन भारत के वायसराय वेवेल को हाथ से लिखा एक पत्र मिला था जिसमें कहा गया था कि अगर एक भी आजाद हिंद फौज का सैनिक मारा गया तो जवाबी कार्यवाही में अंग्रेज भी मारे जाएंगे। यह घटना भले ही छोटी हो लेकिन सरकार को यह अंदाजा हो गया था कि हवा किस दिशा में बह रही है। सरकार को लगने लगा था कि आजाद हिंद फौज में बढ़ती हुई लोगों की सहानुभूति और भारतीय सेना की ओर से आने वाली आक्रमण की आशंका  ऐसे पहलू थे जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था। जिस प्रकार आजाद हिंद फौज के सैनिकों के खिलाफ कारवाई की गई उसने लोगों के अंदर एक अलग तरह की राष्ट्रीयता की भावना को जन्म दिया जिसमें हिंदु मुस्लिम की भावना से अलग सारे भारतीय एक साथ खड़े थे।
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